मुंबई, 11 मार्च, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने 13 साल की रेप पीड़ित को 7 महीने की प्रेग्नेंसी में गर्भपात (अबॉर्शन) कराने की अनुमति दे दी है। जस्टिस सुदेश बंसल की अदालत ने अपने आदेश में कहा- अगर पीड़ित को डिलीवरी के लिए मजबूर किया गया तो उसे जीवनभर तकलीफ का सामना करना पड़ेगा। इसमें बच्चे के भरण-पोषण से लेकर अन्य मुद्दे भी शामिल हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि बच्चे को जन्म देने से पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने महिला चिकित्सालय सांगानेर (जयपुर) की अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे मेडिकल बोर्ड से नाबालिग लड़की के गर्भपात कराने की व्यवस्था करें। कोर्ट ने कहा कि अगर भ्रूण जीवित मिलता है तो उसे जिंदा रखने के सारे इंतजाम किए जाएंगे। भविष्य में राज्य सरकार के खर्च पर भ्रूण का पालन-पोषण किया जाएगा। यदि भ्रूण मृत पाया जाता है, तो उसके टिश्यू डीएनए रिपोर्ट के लिए स्टोर किए जाएंगे।
पीड़ित लड़की की वकील सोनिया शांडिल्य ने बताया, पीड़ित 27 हफ्ते 6 दिन (7 महीने) की गर्भवती है। उसके माता-पिता भी गर्भपात कराना चाह रहे थे। हमने कोर्ट को बताया कि ऐसे कई मामले हैं, जहां हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट ने 28 हफ्ते (7 महीने) की प्रेग्नेंट को भी अबॉर्शन की अनुमति दी है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीन एक्सपर्ट के मेडिकल बोर्ड से पीड़ित की जांच करके रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। मेडिकल बोर्ड ने 8 मार्च को रिपोर्ट दी थी। इसमें कहा गया था कि अबॉर्शन में हाई रिस्क है, लेकिन इसे कराया जा सकता है। हमने कोर्ट से कहा कि पीड़ित बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के अनुसार, रेप के कारण प्रेग्नेंसी से होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर माना जाएगा।