योगी सरकार ने 2015 दंगों के 31 आरोपियों पर से केस हटाए

Photo Source : NBT

Posted On:Friday, October 11, 2024


कानपुर न्यूज डेस्क: योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2015 में कानपुर के फजलगंज थाना क्षेत्र के दर्शनपुरवा में हुए दंगे और आगजनी की घटना से जुड़े 31 आरोपियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामला वापस लेने का आदेश जारी किया है। इस घटना में दो समुदायों के बीच धार्मिक पोस्टर के कथित अपमान को लेकर झड़प हुई थी, जिसमें पथराव और नारेबाजी की गई थी। अधिकारियों के अनुसार, यह कदम गुरुवार को उठाया गया। उस समय राज्य में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार थी, जब यह दंगा हुआ था।

दर्शनपुरवा पुलिस चौकी के तत्कालीन प्रभारी उपनिरीक्षक बृजेश कुमार शुक्ला ने दंगा भड़काने, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम (पीपीडी अधिनियम) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की अन्य धाराओं को भी इसमें शामिल किया गया था। जिला सरकारी वकील (अपराध) दिलीप अवस्थी के अनुसार, सभी 31 आरोपियों ने एक लिखित निवेदन सरकार को दिया, जिसमें उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को समाप्त करने की मांग की गई थी।

सरकारी वकील ने जानकारी दी कि इस मामले को पहले एक समिति के पास भेजा गया, जिसने जिला प्रशासन और पुलिस से रिपोर्ट की मांग की थी। दिलीप अवस्थी ने कहा कि इसके बाद राज्य सरकार ने 31 आरोपियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले को समाप्त करने का आदेश जारी किया। उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में लिखित आदेश कानपुर के जिलाधिकारी को भेजा गया, जिसके आधार पर यह कार्रवाई की गई।

कानपुर दंगों के संबंध में पीड़ितों ने आरोप लगाया था कि उस समय के सपा विधायक इरफान सोलंकी ने फर्जी मुकदमों के जरिए 31 निर्दोष लोगों को जेल भिजवाया था। अब इन मामलों को समाप्त करने के लिए सरकार के विशेष सचिव मुकेश कुमार सिंह ने जिलाधिकारी को पत्र भेजा है। सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र के दर्शनपुरवा में 2015 में मुहर्रम जुलूस के दौरान कुछ युवकों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों का अपमान किए जाने के बाद शहर में दंगे भड़क उठे थे।

यह आरोप है कि तत्कालीन विधायक इरफान सोलंकी ने झूठे मुकदमे दर्ज कराकर दर्शनपुरवा के 31 लोगों को जेल भेजा था। भाजपा उत्तर जिलाध्यक्ष दीपू पांडेय और भाजपा नेता सुरेश खन्ना ने इस मुद्दे को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष रखा और निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग की। मुख्यमंत्री ने इसका संज्ञान लेते हुए सरकार से आदेश जारी करवाया, जिसमें मुकदमों को वापस लेने का निर्णय लिया गया।


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