अभी जेल में ही रहेंगे अनंत सिंह… दुलारचंद हत्याकांड में जमानत याचिका हुई खारिज

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Posted On:Thursday, November 20, 2025

बिहार की मोकामा सीट से जनता दल यूनाइटेड (JDU) के बाहुबली विधायक अनंत सिंह को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है। विधानसभा चुनाव के दौरान हुए दुलारचंद यादव हत्याकांड के मामले में उनकी जमानत याचिका को पटना सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

अनंत सिंह ने जमानत के लिए पटना सिविल कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी, लेकिन कोर्ट ने उन्हें कोई राहत नहीं दी।

क्या है दुलारचंद हत्याकांड?

दुलारचंद यादव की हत्या विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हुई थी, जिसने मोकामा और आसपास के इलाकों में राजनीतिक माहौल को गरमा दिया था।

  • घटना: दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या की गई थी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर आरोप लगे थे।

  • राजनीतिक पृष्ठभूमि: दुलारचंद यादव हत्याकांड को मोकामा विधानसभा चुनाव के दौरान वर्चस्व की लड़ाई और राजनीतिक रंजिश से जोड़कर देखा गया था।

  • गिरफ्तारी: इस हत्याकांड और संबंधित मामलों के चलते ही, मतदान से ठीक पहले अनंत सिंह को गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी ने मोकामा सीट पर चुनाव प्रचार को बुरी तरह प्रभावित किया था।

अनंत सिंह का नाम बिहार की राजनीति में हमेशा से ही विवादों और आपराधिक मामलों से जुड़ा रहा है। उन पर हत्या, अपहरण और अवैध हथियार रखने समेत कई संगीन मामले दर्ज हैं।

न्यायिक प्रक्रिया और आगे की राह

गिरफ्तारी के बाद से ही अनंत सिंह जेल में बंद हैं। उन्होंने निचली अदालत से राहत पाने की कोशिश की, लेकिन पटना सिविल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें फिलहाल रिहा नहीं किया जा सकता।

  • जमानत खारिज: कोर्ट के इस फैसले से साफ है कि न्यायिक प्रक्रिया में यह मामला अभी काफी मजबूत माना जा रहा है।

  • अनंत सिंह की स्थिति: विधायक होने के बावजूद, अनंत सिंह को जेल से बाहर निकलने में अब और अधिक कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। अब उनके पास उच्च न्यायालय, यानी पटना हाई कोर्ट, में जमानत अर्जी दाखिल करने का विकल्प शेष है।

अनंत सिंह की अनुपस्थिति का असर न केवल मोकामा क्षेत्र की राजनीति पर, बल्कि पूरे सत्तारूढ़ JDU-NDA गठबंधन की रणनीति पर भी पड़ता है। जमानत खारिज होने से यह स्पष्ट हो गया है कि उन्हें कानूनी लड़ाई लंबी लड़नी पड़ सकती है। यह घटनाक्रम बिहार की राजनीति में बाहुबलियों के खिलाफ न्यायिक सख्ती के एक बड़े संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है।


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