पंचांग के अनुसार, आज यानी गुरुवार, 16 जनवरी 2025 को माघ माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस तिथि पर कई तरह के शुभ योग के साथ-साथ अशुभ योग भी बन रहे हैं। ऐसे में चलिए पंचांग (Aaj ka Panchang 2025) से जानते हैं आज के शुभ मुहूर्त व राहुकाल के बारे में।
आज का पंचांग (Panchang 16 January 2025)
🌕🌞 श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
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🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩 🌅पंचांग- 16.01.2025🌅
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- शिशिर __ उत्तरायण
मास - माघ _ कृष्ण पक्ष
वार - गुरुवार
तिथि _ तृतीया 28:05:32
नक्षत्र आश्लेषा 11:15:32
योग आयुष्मान 25:04:46
करण वणिज 15:38:52
करण विष्टि भद्र 28:05:32
चन्द्र राशि -कर्क till 11:15
चन्द्र राशि - सिंह from 11:15
सूर्य राशि - मकर
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩 ✍️ अश्वत्थ पूजन 🍁 अग्रिम (आगामी पर्वोत्सव 🍁
🔅 संकष्ट/ तिलकुटा चौथ व्रत
. 17 जनवरी 2025
(शुक्रवार)
🔅 षट्तिला एकादशी व्रत
. 25 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 प्रदोष व्रत
. 27 जनवरी 2025
(सोमवार)
🔅 मौनी अमावस व्रत
. 29 जनवरी 2025
(बुधवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️ 🏵️ प्रयागराज को क्यों कहा गया तीर्थराज 🏵️
प्रयाग तीर्थों के नायक हैं, तीर्थों के राजा हैं और मोक्ष देने वाली सातों पुरियां उनकी रानियां हैं। इनमें पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है। प्रयाग ने उन्हें मुक्ति देने का अबाध और अनंत अधिकार सौंप रखा है। पुराणकाल में उनके लिए कहा है- मुक्तिदाने नियुक्ता। वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन् प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। इसी तरह शताध्यायी के संदर्भों में त्रिवेणी और प्रयाग- अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ और आश्रम हैं।
त्रिदेवों की पुण्यस्थली तीर्थराज प्रयाग को पुराणों में विष्णुप्रजापति और हरिहर क्षेत्र कहा गया है। सृष्टि रचना से पहले यहीं प्रजापिता ब्रह्मा ने दशाश्वमेध यज्ञ किया था। तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती हैं। एक कथा के अनुसार शेष भगवान के निर्देश से ब्रह्मा ने सभी तीर्थों की पुण्य गरिमा को तराजू पर तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग को रखा गया तो बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमण्डल को छूने लगा, लेकिन जिस पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे, उसने धरती नहीं छोड़ी।
इस पौराणिक उल्लेख के जरिये तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। कहा गया है ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड की नहीं। इसी प्रकार प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। किसी तीर्थ से प्रयाग का जन्म होना असम्भव है। एक अन्य कथा के अनुसार तीर्थराज की पहचान होने के बाद काशी विश्वनाथ स्वयं आकर प्रयाग में रहने लगे। उन्होंने महाविष्णु रूप भगवान वेणी माधव के दर्शन किए। वेणी माधव, अक्षयवट के पत्ते पर बालमुकुन्द रूप धारण कर अपनी महिमा का विस्तार करने के बारे में सोच रहे थे, तभी शूलपाणि शिव अक्षयवट की रक्षा करने को वहीं उपस्थित थे।
पद्मपुराण के अनुसार भगवान वेणी माधव को शिव अत्यंत प्रिय हैं। वही शिव अवंतिका में महाकालेश्वर के रूप में विराजमान हैं, वहीं शिव कांची की पुण्य गरिमा के कारण हैं। उनका प्रयाग में निरन्तर निवास करना शैव और वैष्णव धर्म के समन्वय का प्रमाण है।
जय जय श्री सीताराम
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर, (जयपुर)