दिल्ली की दमघोंटू हवा से राहत की उम्मीद अब कुछ हद तक दिखाई देने लगी है। मंगलवार को राजधानी में क्लाउड सीडिंग के दूसरे चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया गया। इस तकनीक का उद्देश्य कृत्रिम वर्षा के माध्यम से प्रदूषकों को कम करना और वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, इस प्रयोग से कई इलाकों में हवा की गुणवत्ता में हल्का सुधार देखने को मिला है।
कानपुर से रवाना हुआ स्पेशल एयरक्राफ्ट
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के लिए एक विशेष विमान को कानपुर से दिल्ली बुलाया गया था। यह विमान राजधानी के कई हिस्सों—जैसे मयूर विहार, बुराड़ी, करोल बाग, पंजाबी बाग और द्वारका—के ऊपर जाकर बादलों में विशेष रासायनिक कणों का छिड़काव किया गया। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन कणों के जरिए बादलों में संघनन की प्रक्रिया तेज होती है, जिससे कृत्रिम बारिश संभव होती है। मंगलवार की शाम को हल्की बूंदाबांदी और धूलकणों में कमी इसका प्रारंभिक संकेत मानी जा रही है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रयोग वायु गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में एक “वैज्ञानिक मील का पत्थर” साबित हो सकता है।
AQI मॉनिटरिंग में दिखा सुधार
दिल्ली के 20 मॉनिटरिंग स्टेशनों से जुटाए गए आंकड़ों में क्लाउड सीडिंग के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में मामूली लेकिन स्पष्ट सुधार देखा गया।
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मयूर विहार: PM2.5 स्तर 221 µg/m³ से घटकर 207 µg/m³ पर आया।
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करोल बाग: 230 से गिरकर 206 µg/m³।
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बुराड़ी: 229 से घटकर 203 µg/m³।
इसी तरह, PM10 स्तर में भी कमी दर्ज की गई।
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मयूर विहार में 207 से घटकर 177 µg/m³,
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करोल बाग में 206 से 163 µg/m³
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और बुराड़ी में 209 से घटकर 177 µg/m³ पर पहुंच गया।
इन आंकड़ों से साफ है कि कृत्रिम बारिश ने हवा में मौजूद महीन धूलकणों को नीचे बैठाने में मदद की है।
कम हवा की रफ्तार बनी चुनौती
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि वायु गुणवत्ता में बड़ा सुधार न हो पाने के पीछे मौसम की स्थिति भी जिम्मेदार रही। मंगलवार को हवा की गति बेहद धीमी थी, जिससे क्लाउड सीडिंग से उत्पन्न नमी और वायुमंडलीय कण वातावरण के निचले हिस्से में ही रह गए। इससे प्रदूषकों के फैलाव में बाधा आई और कृत्रिम बारिश का असर सीमित रह गया। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के एक अधिकारी ने बताया, “अगर हवा की गति थोड़ी अधिक होती तो बारिश का प्रभाव ज्यादा साफ नजर आता। लेकिन यह परीक्षण इस बात का प्रमाण है कि तकनीक सही दिशा में काम कर रही है।”
प्रदूषण नियंत्रण में नई उम्मीद
क्लाउड सीडिंग तकनीक भारत में अब धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है। यह वही तकनीक है जिसे पहले दुबई, चीन और अमेरिका जैसे देशों में प्रदूषण नियंत्रण व सूखा राहत परियोजनाओं के लिए सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा चुका है। दिल्ली सरकार का मानना है कि अगर आने वाले हफ्तों में इस तकनीक के परिणाम स्थायी रूप से सकारात्मक रहते हैं, तो सर्दियों में जब स्मॉग सबसे घातक स्तर पर होता है, तब क्लाउड सीडिंग को नियमित तौर पर लागू किया जा सकता है।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कहा, “हम इस तकनीक को स्थायी समाधान के रूप में नहीं, बल्कि अस्थायी राहत के उपाय के रूप में देख रहे हैं। प्रदूषण के खिलाफ जंग में हमें वाहनों से उत्सर्जन, पराली जलाने और निर्माण कार्यों से निकलने वाले धूलकणों को भी नियंत्रित करना होगा।”
वैज्ञानिकों ने बताया सफलता का महत्व
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों, जो इस प्रोजेक्ट में तकनीकी सहायता प्रदान कर रहे हैं, ने कहा कि यह परीक्षण अब तक के सबसे सफल प्रयासों में से एक रहा है। उन्होंने बताया कि अगले चरण में बारिश की तीव्रता, हवा की दिशा और तापमान में बदलाव का विश्लेषण किया जाएगा ताकि तकनीक को और अधिक सटीक बनाया जा सके।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का दूसरा चरण भले ही सीमित प्रभाव वाला रहा हो, लेकिन इसने साफ संकेत दिया है कि प्रदूषण पर वैज्ञानिक तरीकों से नियंत्रण संभव है। राजधानी की हवा में मामूली सुधार यह साबित करता है कि यदि मौसम अनुकूल हो और इस प्रक्रिया को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए, तो आने वाले वर्षों में दिल्लीवासियों को स्वच्छ सांसें मिल सकती हैं। फिलहाल, यह प्रयोग सरकार, वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों के बीच उम्मीद की एक नई किरण बनकर उभरा है, एक ऐसी कोशिश, जो दिल्ली को “गैस चेंबर” की पहचान से बाहर निकाल सकती है।