संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लगाए गए कठोर आर्थिक प्रतिबंधों को जारी रखने का फैसला किया है। इस प्रस्ताव का समर्थन सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 9 देशों ने किया, जबकि रूस, चीन, पाकिस्तान और अल्जीरिया ने इसका विरोध जताया। ये प्रतिबंध 28 सितंबर 2025 से प्रभावी हो जाएंगे। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी का मानना है कि ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते JCPOA के वादों का उल्लंघन किया है, जबकि ईरान ने इन प्रतिबंधों को अवैध और राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया है।
परमाणु कार्यक्रम पर वैश्विक चिंता
ईरान का परमाणु कार्यक्रम लंबे समय से वैश्विक समुदाय के लिए चिंता का विषय रहा है। इजरायल ने इससे पहले ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया था, जिससे वे ध्वस्त हो गए थे। हालांकि, ईरान ने अपने परमाणु संयंत्रों की मरम्मत कर पुनः परमाणु गतिविधियां शुरू कर दी हैं। ईरान की सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह परमाणु हथियार विकसित करेगा और इसे रोकने वालों को कड़ा जवाब दिया जाएगा। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत कई अन्य देशों ने ईरान पर कड़े आर्थिक, वित्तीय और तकनीकी प्रतिबंध लगाए हैं।
ईरान की प्रतिक्रिया
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले को अवैध और अन्यायपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक साजिश का हिस्सा है और इसका जवाब ईरान कड़ी कार्रवाई के रूप में देगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान अब इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग नहीं करेगा और एजेंसी को आवश्यक जानकारी प्रदान करना बंद कर देगा। इसके अलावा, ईरान ने रूस, चीन और अरब देशों के साथ अपने सहयोग को और मजबूत करने का भी ऐलान किया है।
अमेरिका और ट्रंप का रुख
अमेरिका ने लंबे समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध किया है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मामले में इजरायल का समर्थन किया और ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमलों का समर्थन किया। अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि ईरान का परमाणु हथियार हासिल करना वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है। यदि ईरान परमाणु हथियारों का उपयोग किसी देश के खिलाफ करता है, तो इससे वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर संघर्ष की आशंका है।
प्रतिबंधों का असर
ईरान पर लगे प्रतिबंध उसकी अर्थव्यवस्था को गहरा झटका पहुंचा सकते हैं। तेल निर्यात में लगभग 50% की गिरावट आ सकती है, जिससे देश की आय में भारी कमी होगी। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी और घरेलू कीमतें आसमान छू सकती हैं, जो आम जनता के लिए आर्थिक बोझ बन जाएगा। अनुमान है कि इससे ईरान की GDP में 5 से 7 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। आर्थिक नुकसान के कारण बेरोजगारी और गरीबी की दर बढ़ने की संभावना है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंधों के कारण ईरान ने अपने परमाणु हथियारों का स्टॉकपाइल बढ़ा रखा है, जिससे वह 10 परमाणु बम बना सकता है। इसके अलावा, रूस और चीन के साथ ईरान के बढ़ते संबंधों ने अमेरिका और उसके सहयोगियों की चिंता बढ़ा दी है। मध्य पूर्व क्षेत्र में तनाव और भी बढ़ सकता है, खासकर जब इजरायल ने सीरिया के जरिए ईरान पर हवाई हमलों की योजना बनाई हुई है। इसके चलते पूरे क्षेत्र में सुरक्षा खतरे और अस्थिरता फैलने की आशंका है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को रोकने को तैयार नहीं दिखता। इस मामले में वैश्विक राजनीति और रणनीतिक हित गहरे जुड़े हुए हैं। प्रतिबंध ईरान की आर्थिक स्थिति पर बड़ा प्रभाव डालेंगे, लेकिन साथ ही क्षेत्रीय तनाव और वैश्विक सुरक्षा के लिहाज से खतरे भी बढ़ेंगे। आने वाले समय में यह देखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान के साथ बातचीत के जरिए समाधान निकाल पाता है या फिर स्थिति और जटिल हो जाती है।