रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दो दिवसीय भारत दौरा वर्तमान वैश्विक और द्विपक्षीय परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की अमेरिका और पश्चिमी देशों से दूरी बढ़ी है, और वहीं भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ तनाव भी मौजूद है।
टैरिफ और राष्ट्रीय हित
हाल ही में, अमेरिका ने भारत पर 25+25 फीसद टैरिफ लगाते हुए दावा किया था कि भारत की रूस से तेल खरीद यूक्रेन संघर्ष के लिए फंड प्रदान करती है, जिसके कारण भारत पर 25 फीसद अतिरिक्त लेवी लगाई गई।
हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि उसकी तेल खरीद पूरी तरह से राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूसी तेल कंपनियों पर भारी प्रतिबंध (सैंक्शन) लगाए हैं। इस पृष्ठभूमि में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान के साथ भारत रूस के लिए एक बड़ा और महत्वपूर्ण बाजार है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को संभालने में मदद कर सकता है।
यह दौरा दोनों देशों के लिए पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता कम करने की साझा कोशिश का हिस्सा है, और इसीलिए पुतिन के एजेंडा में मुख्य रूप से रक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग, आर्थिक संबंध और $100 बिलियन के व्यापार लक्ष्य पर फोकस रहने की उम्मीद है।
रक्षा सहयोग में प्रमुखता
रक्षा क्षेत्र में साझेदारी इस दौरे का केन्द्रीय बिंदु है। एजेंडे में सबसे ऊपर सुखोई Su-57 लड़ाकू विमान का जॉइंट प्रोडक्शन शामिल है।
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गहरा मिलिट्री सहयोग: एयर, नेवल और मिसाइल प्लेटफॉर्म के लिए गहरे सैन्य सहयोग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर बातचीत होने की उम्मीद है।
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सैन्य तैनाती समझौता: रूस की संसद (स्टेट ड्यूमा) ने हाल ही में मिलिट्री सहयोग पर एक एग्रीमेंट को मंज़ूरी दी है। यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं की ड्रिल, बचाव और मानवीय प्रयासों को आसान बनाएगा, और रूस और भारत को एक-दूसरे की जमीन पर कानूनी तौर पर सैनिक और उपकरण तैनात करने की इजाजत मिलेगी।
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Su-57 पर बातचीत: भारत में रूस के राजदूत डेनिस एलिपोव ने पांचवीं पीढ़ी के सुखोई Su-57 के जॉइंट प्रोडक्शन के लिए बातचीत की पुष्टि की है। यह 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की भारत सरकार की नीति के अनुरूप है।
अंतरिक्ष में बढ़ती साझेदारी
अंतरिक्ष सेक्टर में दोनों देशों की साझेदारी 1960 के दशक से चली आ रही है। 1984 में राकेश शर्मा सोवियत सोयुज स्पेसक्राफ्ट में अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने थे। यह सहयोग अब नए आयाम छू रहा है:
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गगनयान मिशन: रूस भारत के आने वाले ह्यूमन स्पेसफ्लाइट मिशन, गगनयान, पर भारत के साथ काम कर रहा है।
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नई परियोजनाएँ: रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के चीफ ने कहा कि भविष्य की साझेदारी में इंजन बनाना, रॉकेट फ्यूल, इंसानों वाली स्पेसफ्लाइट और नेशनल ऑर्बिटल स्टेशन का डेवलपमेंट भी शामिल किया जाएगा।
आर्थिक संबंध और 'डॉलर से आज़ादी'
आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की इच्छा पुतिन की यात्रा से पहले ही रूस जाहिर कर चुका है। दोनों देश डॉलर पर निर्भरता कम करने और अपने राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं:
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कार्ड्स को जोड़ना: दोनों देश अपने नेशनल पेमेंट सिस्टम को रूस के 'मीर' और भारत के 'रूपे' कार्ड्स को आपस में जोड़ने पर सहमत होने का इरादा रखते हैं।
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फास्टर पेमेंट्स इंटीग्रेशन: अगला कदम रूस के 'एसबीपी' (फास्टर पेमेंट्स) और भारत के 'यूपीआई' को जोड़ना होगा, जिससे द्विपक्षीय व्यापार और लेनदेन आसान हो जाएगा।