फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई हालिया मुलाकात ने वैश्विक कूटनीति में एक नया अध्याय खोल दिया है। इस मुलाकात की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि जिनपिंग ने मैक्रों के साथ बीजिंग से बाहर, सुदूर चीन के एक दुर्लभ इलाके, चेंग्दू का दौरा किया। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहली बार है जब शी जिनपिंग किसी राष्ट्र प्रमुख के साथ चीन के बड़े शहरों से बाहर का दौरा कर रहे हैं, जो मैक्रों को दी गई तरजीह को दर्शाता है।
दिलचस्प बात यह है कि शी जिनपिंग यह दुर्लभ यात्रा फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ कर रहे हैं, जो उनके सबसे बड़े रणनीतिक सहयोगी रूस का कट्टर दुश्मन माना जाता है। इस यात्रा के पीछे चीन के गहरे रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्य छिपे हुए हैं।
चीन क्यों जुटा है फ्रांस को रिझाने में?
चीन द्वारा फ्रांस को इतनी महत्ता दिए जाने के पीछे निम्नलिखित तीन प्रमुख रणनीतिक कारण हैं:
1. संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक संतुलन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाँच स्थाई सदस्य हैं: चीन, रूस, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन। वर्तमान में, ताइवान के मुद्दे पर चीन को केवल रूस का स्पष्ट समर्थन प्राप्त है, जबकि अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ताइवान के पक्ष में हैं। चीन की रणनीति फ्रांस को अपने पाले में लाकर इस कूटनीतिक संघर्ष में 3-2 की बढ़त हासिल करना है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री तकाइची के बयानों ने ताइवान को लेकर विवाद को और बढ़ा दिया है, जिससे चीन की बेचैनी बढ़ी है।
2. व्यापारिक विस्तार और यूरोपीय बाज़ार: चीन फ्रांस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना चाहता है, क्योंकि 2024 में उसका यूरोपीय देशों के साथ व्यापार कम हो गया है। फ्रांस चीन के लिए यूरोपीय बाज़ार में विस्तार का एक मुफीद रास्ता है। राष्ट्रपति मैक्रों ने भी अपने दौरे के दौरान चीन को पेरिस में निवेश करने का बड़ा ऑफर दिया है और मदद का आश्वासन दिया है।
3. यूरोपीय संघ के साथ टकराव कम करना: रूस-यूक्रेन युद्ध में व्लादिमीर पुतिन की मदद करने के कारण चीन यूरोपीय देशों के निशाने पर रहा है। ब्रिटेन ने चीनी दूतावास को लेकर बीजिंग पर शिकंजा भी कसा है। चीन इस तनाव को कम करने और यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों में आई टकराहट को शांत करने के लिए फ्रांस को एक पुल के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। यही वजह है कि वह इमैनुएल मैक्रों की इतनी आवभगत कर रहा है।
मैक्रों की जवाबी रणनीति
इमैनुएल मैक्रों भी इस अवसर को भुनाने में पीछे नहीं रहे हैं। बीजिंग पहुँचते ही मैक्रों ने चीन को उलझाने के लिए प्रमुख वैश्विक मुद्दा – यूक्रेन युद्ध – उठा दिया। मैक्रों ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर जंग को तुरंत नहीं रोका गया तो दुनिया विघटन की ओर बढ़ जाएगी।
मैक्रों की रणनीति स्पष्ट है: रूस के सबसे बड़े सहयोगी चीन को विश्वास में लेकर, उस पर युद्ध रोकने का दबाव बनाना और परोक्ष रूप से पुतिन को झटका देना। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि 2024 में चीन ने रूस से सबसे अधिक कच्चा तेल खरीदा है, जो युद्ध के बीच रूस की अर्थव्यवस्था के लिए जीवनरेखा बना हुआ है। इस दौरे से यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों ही नेता अपने-अपने हितों को साधने के लिए एक जटिल और संवेदनशील कूटनीतिक चाल चल रहे हैं।