कानपुर न्यूज डेस्क: अब नदियों से रेत निकालने का काम वैज्ञानिक और नियंत्रित तरीके से होगा। आईआईटी कानपुर और नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) मिलकर एक ऐसा मॉडल तैयार कर रहे हैं, जो यह बताएगा कि नदी के किस हिस्से से कितनी रेत सुरक्षित रूप से निकाली जा सकती है। पहले कई जगह बिना योजना के रेत निकालने की वजह से नदियों का रास्ता बदल जाता था, किनारे टूटते थे और पानी का स्तर गिरने लगता था। अब ड्रोन और सैटेलाइट की मदद से नदियों की तस्वीरें लेकर यह तय किया जाएगा कि कहां ज्यादा रेत है और कहां से निकालना नुकसानदेह होगा।
आईआईटी कानपुर के प्रो. राजीव सिन्हा के अनुसार, रेत सिर्फ उन्हीं जगहों से निकाली जाएगी, जहां हर साल प्राकृतिक रूप से नई रेत भर जाती है। इससे नदी का संतुलन बना रहेगा और जरूरतमंदों को रेत भी मिलती रहेगी। उन्होंने बताया कि जरूरत से ज्यादा रेत निकालने पर नदी की गहराई बढ़ जाती है, किनारे टूटते हैं और कई बार नदी का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है।
एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव कुमार मित्तल ने बताया कि “सैंड माइनिंग मॉनीटरिंग मॉड्यूल” नामक यह सिस्टम पहले कुछ नदियों पर ट्रायल के तौर पर लगाया जाएगा। यदि यह सफल रहता है, तो पूरे देश में इसे लागू किया जाएगा। इस मॉडल से न केवल रेत निकालने का सही तरीका पता चलेगा, बल्कि बाढ़ का खतरा, किनारों की कटाई और भूजल स्तर पर असर जैसी जानकारियां भी मिलेंगी।
इस नए मॉडल से अवैध रेत खनन पर भी नियंत्रण लगेगा। अधिकारी अब तय कर सकेंगे कि किस जगह से कितनी रेत निकाली जाए, जिससे नदियों को नुकसान न पहुंचे। प्रो. मित्तल ने कहा कि आईआईटी का यह तरीका नदियों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब हर रेत के कण की निगरानी होगी और नदियों का संरक्षण सुनिश्चित होगा, जबकि लोगों को रेत की आवश्यकता भी पूरी होती रहेगी।