कानपुर न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश के कानपुर में 27 साल पुराने दंगे के मामले में अदालत ने 60 आरोपियों की सुनवाई पूरी कर ली है। 1998 में लक्ष्मीपुरवा मस्जिद इलाके में इमाम के साथ मारपीट के बाद हिंसा भड़क गई थी, जिसमें उपद्रवियों की गोली से एसपी साउथ के गनर कुंअर पाल सिंह की मौत हो गई थी। इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट 52 के न्यायाधीश राहुल सिंह ने सुनवाई पूरी कर 45 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, जबकि 13 आरोपियों की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी थी। वहीं, दो अन्य आरोपियों की फाइल को अलग कर दिया गया है।
घटना 9 जनवरी 1998 की है, जब मस्जिद के इमाम के साथ दूसरे समुदाय के युवक ने मारपीट और अभद्रता की थी। इसके विरोध में मुस्लिम समुदाय के लोग गिरफ्तारी और बिजली आपूर्ति की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए। हलीम कॉलेज चौराहे पर रात करीब 9 बजे दो हजार से ज्यादा लोग जमा हो गए। पुलिस ने जब भीड़ को हटाने के लिए लाउडस्पीकर से घर जाने की अपील की, तो उपद्रवियों ने पथराव और फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान मौके पर पहुंचे एसपी साउथ अशोक कुमार के गनर कुंअर पाल सिंह को उपद्रवियों की गोली लगी, जिससे उनकी मौके पर मौत हो गई।
इस हिंसा के बाद पुलिस ने उपद्रवियों पर काबू पाया और 77 आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की। अभियोजन पक्ष की ओर से 12 गवाह पेश किए गए, लेकिन कोर्ट में अभियोजन की कहानी को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले। 81 पन्नों के फैसले में अदालत ने 45 आरोपियों को बरी कर दिया।
हालांकि, इस मामले में चार आरोपियों के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा चला। फास्ट ट्रैक कोर्ट 52 ने इन चारों को दोषी पाते हुए तीन-तीन साल की सजा सुनाई और एक-एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया। कोर्ट के इस फैसले के बाद 27 साल पुराने इस केस का बड़ा अध्याय खत्म हो गया है।