कानपुर न्यूज डेस्क: लखनऊ और कानपुर के बीच बन रहे एक्सप्रेसवे पर देश में पहली बार अत्याधुनिक AIMGC (Automated Intelligence Machine Guided Construction) तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। ये तकनीक अब तक सिर्फ अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब भारत भी इस सूची में शामिल हो गया है। इस तकनीक की खासियत यह है कि यह निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर सटीक निगरानी रखती है। अगर कहीं पर घटिया सामग्री या निर्धारित मात्रा से कम इस्तेमाल किया गया, तो इसकी जानकारी तुरंत अधिकारियों को मिल जाती है।
इस 63 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे का लगभग 45 किलोमीटर हिस्सा ग्रीनफील्ड ज़ोन में पड़ता है, जिसे पूरी तरह से नई तकनीक के साथ विकसित किया जा रहा है। निर्माण में GPS और 3D मॉडलिंग का भी सहारा लिया जा रहा है जिससे सड़क की सतह एकदम समतल रहे और सामग्री का उपयोग बिल्कुल तय मानकों के हिसाब से हो। इससे सड़क की मजबूती भी ज्यादा होगी और इसकी उम्र भी लंबी चलेगी। सड़क की हर परत की मोटाई, उसमें इस्तेमाल हो रही सामग्री और कहां-कहां कट और अंडरपास बनेंगे, यह सब कुछ तकनीकी डिवाइसेज़ से कंट्रोल किया जा रहा है।
करीब 3,000 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा यह देश का सबसे छोटा लेकिन हाईटेक एक्सप्रेसवे है। इसका निर्माण जनवरी 2022 में शुरू हुआ था और इसे जुलाई 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य है। यह एक्सप्रेसवे लखनऊ के शहीद पथ से शुरू होकर बनी, कांथा और अमरसास होते हुए कानपुर के आज़ाद मार्ग तक जाएगा। इसे कानपुर के उद्योग पथ, उन्नाव में गंगा एक्सप्रेसवे और लखनऊ की बाहरी रिंग रोड से भी जोड़ा जाएगा। NHAI के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सौरभ चौरसिया का कहना है कि नई तकनीक के कारण ये सड़क कम से कम 10 साल तक किसी तरह की टूट-फूट से मुक्त रहेगी।