कानपुर न्यूज डेस्क: इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाले कई वकील अब खुद अपराधों में लिप्त पाए जा रहे हैं। ऐसे अधिवक्ताओं को चिन्हित करने के लिए लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई कि प्रदेशभर में उन वकीलों की पहचान की जाए, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने सभी जिलों के पुलिस अधिकारियों से इन अधिवक्ताओं की सूची मांगी है। इस क्रम में कानपुर पुलिस ने 274 वकीलों की एक सूची जारी की है, जिन पर विभिन्न आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।
उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की बेंच ने यह निर्देश दिया है कि अपराध में संलिप्त वकीलों को चिन्हित किया जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। इसके तहत बार काउंसिल ऑफ यूपी ने प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को पत्र भेजकर अधिवक्ताओं के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी मांगी। पुलिस द्वारा जारी सूची में कई ऐसे नाम शामिल हैं, जो राजनीति से भी जुड़े हुए हैं और वकालत के नाम पर अपने निजी स्वार्थों को साधने में लगे हुए हैं।
बार काउंसिल ऑफ यूपी के सदस्य अंकज मिश्रा का कहना है कि कुछ लोग वकील की डिग्री लेने के बाद इंसाफ की लड़ाई नहीं लड़ते, बल्कि अपने स्वार्थ और राजनीतिक फायदे के लिए कानून का दुरुपयोग करने लगते हैं। संगठन के नाम पर खुद को सुरक्षित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें न तो वकालत की परवाह होती है और न ही कानूनी प्रक्रिया की। इसलिए ऐसे अधिवक्ताओं को चिन्हित कर कार्रवाई करना जरूरी हो गया है।
हालांकि, मिश्रा का कहना है कि इस आदेश में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। उनका मानना है कि पुलिस को सूची तैयार करते समय यह भी देखना चाहिए कि किन मामलों में वकीलों के खिलाफ शिकायतें किसी व्यक्तिगत दुश्मनी, पारिवारिक विवाद या राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते दर्ज की गई हैं। दहेज उत्पीड़न, पुश्तैनी जमीन के झगड़े या अन्य विवादों के चलते दर्ज मामलों की समीक्षा होनी चाहिए, ताकि निर्दोष अधिवक्ताओं के खिलाफ कोई गलत कार्रवाई न हो।
फिलहाल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद कानपुर पुलिस ने 274 अधिवक्ताओं की सूची तैयार कर ली है और इसे बार काउंसिल व अन्य संबंधित अधिकारियों को भेजने की तैयारी कर रही है। इस सूची में कई राजनेता भी शामिल हैं, जो अधिवक्ता होने के साथ-साथ राजनीति से भी जुड़े हुए हैं। बार काउंसिल का कहना है कि ऐसे वकीलों को चिन्हित कर संगठन से बेदखल किया जाना ही अधिवक्ता समाज की साख को बचाने का एकमात्र तरीका है।