कानपुर न्यूज डेस्क: कानपुर प्राणी उद्यान में इलाज के लिए लाए गए एक बाघ की मौत हो गई है। लखीमपुर खीरी के महेशपुर रेंज से पकड़े गए इस बाघ को 26 नवंबर को इलाज के लिए चिड़ियाघर लाया गया था। बाघ को क्वारंटाइन में रखा गया था, और उस पर डॉक्टरों की टीम नजर रखे हुए थी। लेकिन 29 नवंबर को बाघ अपने बाड़े में मृत पाया गया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उसकी मौत सेप्टीसीमिया (रक्त संक्रमण) से हुई।
लखीमपुर खीरी के इस बाघ ने नवंबर में मन्नापुर गांव के दो किसानों पर हमला कर उनकी जान ले ली थी। इसके बाद वन विभाग ने 23 नवंबर को घायल हालत में इसे पकड़ा था। चिड़ियाघर लाने के बाद बाघ ने शुरुआती तीन दिनों में पांच किलो मांस खाया, लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ती चली गई। डॉक्टरों के अनुसार, उसके शरीर पर एक दर्जन से अधिक चोटों के निशान थे।
चिड़ियाघर के निदेशक केके सिंह ने बताया कि बाघ को गंभीर हालत में इलाज के लिए लाया गया था। उसकी चोटें इतनी गहरी थीं कि उसे बचाना मुश्किल हो गया। निदेशक के मुताबिक, ऐसा लग रहा था कि किसी अन्य जंगली जीव के हमले में यह बाघ घायल हुआ था। घटना की सूचना लखीमपुर वन विभाग को दे दी गई है।
नवंबर का महीना कानपुर प्राणी उद्यान के लिए बेहद दुखद साबित हुआ। इस महीने में यहां तीन वन्यजीवों की मौत हो चुकी है, जिनमें दो बाघ और एक तेंदुआ शामिल हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. अनुराग सिंह ने बताया कि इनमें से एक बाघ पीलीभीत से गंभीर स्थिति में लाया गया था, जबकि दो अन्य वन्यजीव अपनी औसत उम्र पार कर चुके थे।
वन्यजीव संरक्षण से जुड़े इस मामले ने जंगली जीवों की देखभाल और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत पर सवाल खड़े किए हैं। चिड़ियाघर प्रशासन ने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित कर बाघ का अंतिम संस्कार कर दिया है। यह घटना वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके इलाज को लेकर नई नीतियों की मांग करती है।